आविष्कार जरूरतों के हिसाब से होते है,
पर करते वही है जिनको जरुरत होती है,
जिनको अँधेरे में रहने की आदत है,
वो बल्ब के बारे में सोच भी नहीं सकते,
तो सिर्फ अपनी जरूरते बढ़ाओ,
उन ज़रूरतों को पूरा करने की भूख आपको एडिसन बना देगी।
Thomas Alva Edison Biography in Hindi
असफलता से न डरने वाले इंसान (थॉमस एडिसन )
तो आज हम आपको एक महान वैज्ञानिक की जीवनी के बारे में रु-ब-रु करवाएंगे। सोचो अगर बल्ब न होता तो कैसी होती ज़िन्दगी। बल्ब का आविष्कार करने वाले एडिसन ने अपनी असफ़लतों पर भी हार नहीं मानी। हज़ारों से भी अधिक बार प्रयास करने के बाद ये महान इंसान बल्ब बनाने में सफल हुए तो दोस्तों हम कैसे 4 ,5 बार प्रयास करके बोल देते है कि बहुत मेहनत कि पर कुछ हासिल नहीं हुआ। कहने का मतलब यह है कि जब तक अपने काम में सफलता हासिल न हो तब तक उसे करते रहो। और कौन कहता है कि 1 बार प्रयास किया और अगर उसमे तुम कामयाब नहीं हुए तो आपकी हार है, असफलता से न डरने वाले इंसान को ही सफलता मिलती है।
जीनियस साइंटिस्ट (थॉमस एडिसन )
महान अमेरिकन आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन का जन्म 11 फरवरी 1847 को हुआ। बचपन में दिमागी तोर पर कमजोर होने के कारण इन्हे स्कूल से निकाल दिया गया और परन्तु इनकी 11 साल की उम्र तक इनकी माँ ने इन्हे खुद पढ़ाया 2 साल बाद इन्होने समाचार पत्र बेचना शुरू कर दिया पर धीरे धीरे ‘ग्रांड ट्रंक हेराल्ड’ नाम का अपना newspaper अपने पुराने कस्टमर्स को बेचना शुरू कर दिया। 24 साल की उम्र में उन्होंने शादी कर ली थी और इनकी पत्नी मैरी इनसे उम्र में छोटी थी। जब एडिसन ने मैरी से शादी की तो वो 16 साल की थी। सन 1984 में पहली पत्नी मैरी की मृत्यु के बाद इन्होने दूसरी शादी कर ली थी।
बल्ब की बात करे तो ये कई बार बल्ब बनाने में असफल हुए पर बार बार प्रयास करने के बाद इनकी मेहनत रंग लाई और साथ ही साथ फोनोग्राफ का आविष्कार तो पहले की कर चुके थे पर इसका पेटेंट इन्हे बाद में मिला। इसके अलावा एडिसन ने कई उपकरणों की खोज में अपनी बेहतरीन भूमिका निभाई।
स्कूल से आया लेटर पढ़कर क्यों रोई थॉमस की माँ
आखिरकार क्या लिखा था पत्र में कि थॉमस कि माँ रो पड़ी बता दे कि थॉमस सिर्फ 11 हफ़्तों तक ही स्कूल गए और एक दिन उन्होंने अपनी माँ को एक पत्र दिया और बोले कि टीचर ने कहा है कि सिर्फ माँ ही पढ़े, पत्र पढ़ते ही उनकी माँ की आंखों में आंसू आ गए जब थॉमसन ने पूछा की माँ इसमें क्या लिखा है तो उसकी माँ ने लैटर पढ़ते हुए बोली, कि आपका बेटा बहुत जेनियस है हमारा स्कूल बहुत छोटा है। और हमारे पास इतने इंटेलीजेंट टीचर्स नहीं है जो थॉमस को पढ़ा सके। उस दिन से जब तक थॉमस की माँ उसके साथ थी तब तक खुद ही अपने बेटे को पढ़ाया और कुछ समय बाद उनकी माँ की डेथ हो गई।
एक दिन थॉमस के हाथ वही लैटर लगा जोकि उसने अपनी माँ को स्कूल से लाकर दिया था। तब तक एडिसन एक महान वैज्ञानिक बन चुका था। उस लैटर को पढ़कर एडिसन हैरान रह गया क्योकि उसमे लिखा था कि आपका बेटा दिमागी तौर पर कमजोर है और हम इसे अपने स्कूल में नहीं रख सकते। कृप्या आप इसे खुद पढ़ाये।
पत्र पढ़कर उनकी आँखों में आंसू आने लगे , फिर थॉमस ने अपनी डायरी में लिखा कि, ‘थॉमस एडिसन जो मानसिक तौर पर कमजोर बच्चा था, और उसकी मां ने उसे इस सदी का सबसे जीनियस इंसान बना दिया।’ 18 अक्टूबर 1931 को इस महान साइंटिस्ट ने संसार को अलविदा कह दिया। परन्तु इनके अविष्कारों के साथ साथ देश इनकी देन का सदा आभारी रहेगा।
सोचो, अगर थॉमस कि माँ भी एडिसन को मंदबुद्धि समझती तो शायद वो एक महान वैज्ञानिक न बन पाते इसलिए पेरेंट्स को बच्चों के मार्क्स देखकर ही उनके टैलेंट का अंदाज़ा नहीं लगाना चाहिए बल्कि बच्चों को मोटीवेट करना चाहिए हर स्थिति में उन्हें प्रेरणा देकर उन्हें आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। अगर हम मछली के टैलेंट का अंदाजा उसके पेड़ पर चढ़ने से लगाए तो वो सारी ज़िंदगी यही समझती रहेगी कि शायद मैं मूर्ख हूँ इसलिए जरुरी नहीं कि एक इंसान में सभी टैलेंट हो पर हर इंसान में कोई न कोई तो कला जरूर होती है।