नाम – महाशय धर्मपाल गुलाटी
जन्म – 27 मार्च 1923
जन्म स्थान – सियालकोट, पाकिस्तान
गृह नगर – दिल्ली, भारत
शैक्षणिक योग्यता – पांचवी के बाद पढ़ाई छोड़ दी
धर्म – हिन्दू
व्यवसाय – MDH के सीईओ
राष्ट्रीयता – भारतीय
पिता – महाश्य चुन्नीलाल
माता – चानन देवी
पत्नी – लीलावन्ती
बच्चे – दो
कभी जीवन यापन के लिए चलाते थे तांगा, और आज है मसाला किंग
कहते है न दोस्तों की सफलता तब हासिल होती है जब शुरुआत करो। और लगातार मेहनत करो। ये फेमस लाइन्स तो आपने सुनी ही होंगी:-
मंज़िल मिल ही जायेगी भटकते ही सही, हारे तो वो लोग है जो घर से निकले ही नहीं।
ये बिलकुल सही है दोस्तों किसी भी चीज़ को पाने के लिए कहीं से तो शुरुआत करनी पड़ती है। बात करे तो हर कोई जानना चाहेगा कि किस तरह महाशय धरमपाल गुलाटी ‘मसालों के बादशाह’ बने। गुलाटी जी ने भी अपने छोटे से बिज़नेस को सफलता के ऊँचे शिखर तक पहुँचाया। आज इनके MDH मसाले हर घरों की रसोई में यूज़ होते है। और मसाले के बिना सब्जी की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि ये खाने को जायकेदार बनाते है।
बता दे कि महाशय धरमपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1923 को सियालकोट (पाकिस्तान) में हुआ। इनके पिता की मिर्च मसालों की छोटी मोटी दुकान थी। और साथ ही साथ धरमपाल के माता पिता धार्मिक प्रवृति वाले और आर्य समाज के अनुयायी भी थे। धरमपाल जी ने 5 वी क्लास से पहले ही पढ़ाई छोड़ दी थी और घर बैठ गए। परन्तु उनके पिता उन्हें कोई हाथ का हुनर सिखाना चाहते थे ताकि वो अपने पैरों पर खड़े हो सके। इसलिए उन्होंने उन्हें लकड़ी का काम सिखाने के लिए भेज दिया कुछ महीनो तक उन्होंने बढ़ाई से काम सीखा पर ज्यादा समय तक वहाँ न टिक पाए और फिर उन्होंने चावल का, कपड़ो का यहां तक कि हार्डवेयर का भी काम भी सीखा ,पर किसी भी काम में उनका मन न लगा। परन्तु वे कोशिश करते रहे और पिता चुन्नीलाल के मसालों के कार्य में ही हाथ बटाने लगे। और 18 वर्ष की आयु में उनके शादी कर दी और इस प्रकार उन्होंने बेटे के प्रति सारे फर्ज अदा कर दिए। दूसरी और मिर्च मसालों के काम को धरमपाल जी पूरी लगन के साथ आगे बढ़ाने में जुट गए।
पाकिस्तान से क्यों आना पड़ा भारत
सब कुछ सही चल रहा है तभी समय ने करवट ली। देश के विभाजन से पकिस्तान में दंगे भड़क गए और और उन्हें रातो रात सियालकोट छोड़ कर भारत आना पड़ा। जैसे तैसे वे अमृतसर पहुंचे और वहाँ से फिर दिल्ली अपनी बहन के घर आये। उस समय उनकी जेब में लगभग 1500 रुपये थे उनमें से 650 रुपये का उन्होंने टांगा खरीद लिया और दिल्ली में उसे चलना शुरू कर दिया। दो महीने तक ये काम करने के बाद उन्होंने उसे बेच कर लकड़ी का खोका खरीद कर छोटी सी दुकान बनवायी और करोल बाग़ में फिर से अपने पुश्तैनी काम को करना शुरू कर दिया। और अपनी उस दुकान का नाम “महशिआन दि हट्टी – सियालकोट वाले”रख दिया। उनकी उस दुकान में मिर्च मसालों का काम अच्छा चलने लगा और धीरे धीरे उनकी मेहनत रंग लाने लगी।
कैसे बने MDH मसालों के बादशाह ?
उन्होंने अपने काम को पूरी लगन और मेहनत से किया और MDH ब्रांड को एक अलग पहचान दी। परन्तु बहोत कम लोग ही महाशयजी की सफलता के पीछे के कठिन परीश्रम को जानते है, क्योंकि उन्हें ये ब्रांड का नाम रोशन करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी परन्तु वे अपने इस काम में अटूट लगन की बदोलत कामयाब होते रहे। quality अच्छी होने की वजह से MDH एक भरोसेमंद ब्रांड बन गया और 1968 में महाशय धरमपाल जी ने दिल्ली में मसालों की फैक्ट्री खोल दी और भारत के आलावा, कई देशो में मसाले एक्सपोर्ट होने लगे। मसाला किंग के नाम से जाने वाले धर्मपाल महाशयजी 100 से अधिक देशों में अपने 60 से अधिक product की supply करते है उनके Top 3 Product है – चना मसाला, चाट मसाला और देग्गी मिर्च,और अब तांगा चलाने वाले महाशय धरमपाल गुलाटी जी आज अरबपति है।
इसके अलावा वे मानवता की भलाई के लिए कभी नहीं चूकते और इतने बड़े बिज़नेस मैन होने के बावजूद वे कभी समाज सेवा से पीछे नहीं हटते। अपने व्यवसाय के साथ वे अपने कस्टमर्स का भी ध्यान रखते है। उन्होंने कई लड़कियों के विवाह कराने में अपना पूर्ण आर्थिक सहयोग दिया इतना ही नहीं उन्होंने कई स्कूलों और हॉस्पिटल्स का भी निर्माण करवाया। इसके साथ साथ वे धार्मिक प्रवृति वाले व्यक्ति है और भाईचारे से रहने की प्रेरणा देते है। आज के युवाओ के लिए महाशयजी के बहुत बड़े प्रेरणास्त्रोत है और आज के युवाओ को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए जैसे कि धर्मपाल जी ने कई तरह के व्यवसायों में अपने हाथ जमाये सफल न हासिल होने पर भी वे आगे बढ़ते गए और अपनी मेहनत के बल पर मसालों के विशाल व्यापार को कुशलता से संभालने के साथ साथ उन्होंने समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य को भी बखूभ ही निभाया। उसी तरह युवा वर्ग को भी इनके जैसी हिम्मत रख कर आगे बढ़ना चाहिए।
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