वैसे तो दोषी को सजा देने के लिए हमारे देश में कड़े से कड़े कानून बनाये गए है पर हमारे देश में फांसी की सजा बहुत ही घिनौना अपराध करने वाले को दी जाती है। और इससे बड़ी सजा कोई नहीं होती और हमने सुना भी है की अगर किसी दोषी को ‘सजा-ए-मौत’ दी जाती है तो जज अपनी निब तोड़ देता है ज्यादातर लोगों को इसके पीछे का कारण पता होगा पर कुछ लोग इससे अभी भी अनजान है।
1). तो जान लीजिये की जज द्वारा पेन की निब इसलिए तोड़ दी जाती है क्योकि उससे किसी व्यक्ति को मौत की सजा मिली है यानि उस कलम से किसी व्यक्ति का जीवन खत्म हुआ और इसका प्रयोग दुबारा न हो मतलब जज को भविष्य में ऐसी सजा न सुनानी पड़े।
2). फांसी की सजा सुना देने से पहले जज सोच विचार कर सकता है परन्तु एक बार जजमेंट देने के बाद उसमे परिवर्तन नहीं किया जा सकता यहां तक ही खुद जज भी उस फैसले को बदल नहीं सकता कहना का भाव है कि जो फैसला हो गया तो वो अटल है।
3). हमारे देश में अलग अलग दोषों के लिए अलग प्रकार की सजा दी जाती है। इसके साथ साथ फांसी देने के लिए हमारे देश में नियम बनाये गए है कि दोषी को कब, कैसे और कहाँ या तक की फांसी देनी की प्रक्रिया ये सब पहले से ही तय कर लिया जाता है।
4). दोषी को जब फांसी दी जाती है तो उस समय फांसी कोठी में जेल अधीक्षक, एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट, फांसी देने के लिए जल्लाद और डॉक्टर रहता है इन सभी की मौजूदगी के बगैर दोषी को फांसी नहीं दी जा सकती।
5). दोषी को फांसी देने से पहले उससे उसकी अंतिम इच्छा जरूर पूछी जाती है उसके बिना उसे फांसी नहीं दी जा सकती दोषी की अंतिम इच्छा को पूरा करने के बाद ही उसे फांसी दी जा सकती है।
6). फांसी देते वक्त जल्लाद मुज़रिम के कान में कुछ कहता है ऐसा क्या कहता है जल्लाद ? वह कहता है कि मैं हुकम के प्रति अपना फर्ज अदा करने के लिए मजबूर हूँ और मुझे माफ़ कर दो इसी के साथ वह हिन्दू भाई को राम राम और मुस्लिमों को सलाम कहते ही चबूतरे से जुड़ा लीवर खींच कर अपने काम के प्रति न्याय करता है।
7). मुजरिम को सूर्य उदय होने से पूर्व फांसी दे दी जाती है ताकि सूर्य उदय होते ही जेल के काम पहले जैसे चलते रहे और जल्दी फांसी इसलिए भी दे दी जाती है ताकि दोषी को ज्यादा इंतज़ार न करना पड़े और फांसी को जल्दी से जल्दी निपटाकर थोड़े समय बाद घर वालो को शव दे दिया जाता है ताकि वो उसका अंतिम संस्कार कर सके।
8). फांसी देने के लिए जल्लाद कुछ दिन पहले से ही सब कुछ चेक कर लेते है ताकि फांसी देते वक्त कोई दिक्कत न आये। फांसी देते समय दोषी के मुँह को काले कपडे से कवर किया जाता है और फिर थोड़ी देर बाद ही फांसी दे दी जाती है। करीब 10 मिनट तक उसे लटका रहने दिया जाता और उसके बाद सिर्फ डॉक्टर लटके हुए दोषी को चेक करता है। मृत घोषित करने के बाद उसे फांसी के फंदे से उतारकर अच्छी तरह चेक किया जाता है।
कहाँ और कैसे तैयार होता है फांसी का फंदा ?
फांसी का फंदा केवल एक ही जगह तैयार किया जाता है मुज़रिम को इस फांसी के फंदे से उसके अंजाम तक पहुंचाया जाता है वो फंदा सिर्फ बिहार के बक्सर की एक सेंटल जेल में ही तैयार किया जाता है और इसे वहाँ के कैदियों द्वारा ही बनाया जाता है। फांसी के फंदे के लिए मनीला रस्सी का प्रयोग किया जाता है अंग्रेज भी फांसी देने के लिए इसी रस्सी का प्रयोग करते थे और तब भी यह बिहार की जेल में ही तैयार की जाती थी।
172 धागों से बनाये जाने वाला ये फंदे को तैयार करने के लिए पहले मशीन में इसकी घिसाई की जाती है और उसमे जे-34 रुई का प्रयोग करके फंदे के लिए 20 फ़ीट लम्बी रस्सी को जेल के कैदियों द्वारा ही बनाया जाता है। जी हाँ दोस्तों ये मजबूत रस्सी बनाने का जिम्मा बिहार जेल के कैदियों को ही दिया जाता है इस तरह कई प्रक्रियों के बाद एक मजबूत फंदे का निर्माण किया जाता है। जिस तरह नए नए कैदी आते रहते है उन्हें साथ साथ प्रशिक्षण भी दिया जाता है। अगर देश के किसी भी मुजरिम को फांसी देनी हो तो फंसा सिर्फ बिहार से ही मंगवाया जाता है। क्योकि वहां के कैदी इसे बनाने में माहिर माने जाते है। और यह सिलसिला चलता रहता है।